चलिए आज आपको बताते है की कैसे रथी देवा हुए मशहूर – उत्तराखंड के विचित्र देवता की अनोखी कहानी
धन सिंह रथी देवता, जिन्हें रथी देवता के नाम से भी जाना जाता है, उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल क्षेत्र में विशेष रूप से पूजनीय हैं। उनका प्रमुख मंदिर टिहरी जनपद के अलेरु गांव के किल्याखाल में स्थित है, जहां हर वर्ष 7 गते बैशाख को विशाल मेला आयोजित होता है।
रथी देवता: एक साधारण व्यक्ति से देवत्व तक का सफर
उत्तराखंड की भूमि को देवभूमि कहा जाता है, जहां अनगिनत देवी-देवताओं की कथाएं प्रचलित हैं। इन्हीं में से एक है रथी देवता, जो अपने शांत स्वभाव और उदारता के लिए न केवल उत्तराखंड, बल्कि पूरे भारत में पूजनीय हैं। हालांकि, बहुत कम लोग जानते हैं कि वे जन्म से देवता नहीं थे, बल्कि एक साधारण व्यक्ति थे, जिनका नाम धन सिंह अधिकारी था।

धन सिंह अधिकारी का जीवन और त्रासदी
धन सिंह अधिकारी टेहरी गढ़वाल के जुआ पट्टी क्षेत्र के अलेरू गांव के निवासी थे। वे एक सामान्य ग्रामीण जीवन जीते थे और पशुपालन में रुचि रखते थे। लेकिन एक समय उनके गांव में एक भयंकर बीमारी—हैजा—फैल गई। यह बीमारी इतनी खतरनाक थी कि इसने कई लोगों की जान ले ली, जिनमें धन सिंह अधिकारी भी शामिल थे।
उस समय की परंपरा के अनुसार, हैजा से मरने वाले लोगों का अंतिम संस्कार जलाकर नहीं, बल्कि उन्हें दफनाकर किया जाता था। धन सिंह को भी गांववालों ने जमीन में दफना दिया। लेकिन उनकी मृत्यु के बाद कुछ अजीब घटनाएं घटने लगीं।
आत्मा का प्रकट होना और देवता का रूप लेना
दफनाने के कुछ दिनों बाद, गांव के लोगों ने अनुभव किया कि कोई अदृश्य शक्ति उनके आसपास मौजूद है। लोगों पर रहस्यमयी शक्तियों का प्रभाव पड़ने लगा, कुछ लोग अचानक बीमार पड़ जाते, तो कुछ को किसी अज्ञात शक्ति का आभास होने लगता। धीरे-धीरे लोगों को समझ में आया कि यह सब धन सिंह अधिकारी की आत्मा का प्रभाव था।
उत्तराखंड की भूमि में यह मान्यता है कि अगर किसी आत्मा को उचित स्थान नहीं मिलता, तो वह भटकने लगती है। जब गांव के बुजुर्गों और स्थानीय पंडितों ने इस घटना की जांच की, तो उन्हें एहसास हुआ कि धन सिंह अधिकारी अब केवल एक आत्मा नहीं रहे, बल्कि एक दिव्य शक्ति में परिवर्तित हो चुके हैं।

गांव के लोगों ने उनकी आत्मा को शांत करने और सम्मान देने के लिए उनकी स्थापना देवता के रूप में की। धीरे-धीरे उनकी पूजा होने लगी, और समय के साथ वे एक लोकदेवता के रूप में पूजे जाने लगे।
रथी देवता की लोकप्रियता और मंदिर
आज, रथी देवता का मुख्य मंदिर अलेरू गांव में स्थित है और हर साल बैशाख के महीने में वहां एक बड़ा मेला आयोजित किया जाता है। लोग उनकी पूजा कर अपने कष्टों से मुक्ति की प्रार्थना करते हैं। ऐसा माना जाता है कि वे अपने भक्तों की हर समस्या का समाधान करते हैं और उनके आशीर्वाद से असाध्य रोग भी दूर हो जाते हैं।

इस तरह, एक साधारण व्यक्ति से एक पूजनीय देवता बनने की उनकी यह कहानी श्रद्धा और आस्था का प्रतीक बन गई है। उनकी कथा हमें यह सिखाती है कि किसी व्यक्ति के कर्म और समाज के प्रति समर्पण उसे अमर बना सकता है, और भले ही मृत्यु हो जाए, लेकिन अच्छाई कभी नहीं मरती।
1983 में, चंबा-धरासू मोटर मार्ग निर्माण के दौरान, कलेथ गांव के पास सड़क निर्माण का कार्य चल रहा था। इस कार्य में नेपाली मजदूर और उनकी पत्नियाँ भी शामिल थीं। जब उन्हें धन सिंह रथी देवता के मंदिर के बारे में पता चला, तो वे वहाँ दर्शन के लिए गए। मंदिर में, देवता ने उनमें से एक नेपाली मजदूर को बताया कि उसकी शादी को सोलह वर्ष हो चुके हैं, लेकिन संतान नहीं हुई है। देवता ने उसे वचन दिया कि अगले वर्ष उसे संतान प्राप्त होगी, बशर्ते वह मंदिर में ‘जातरा’ (भेड़ की बलि) चढ़ाए। कुछ समय बाद, नेपाली मजदूर अपने देश लौट गए, और पांच वर्ष पश्चात, वे संतान के साथ मंदिर में लौटे और वचन अनुसार ‘जातरा’ चढ़ाई। कहा जाता है कि उन्होंने नेपाल में भी धन सिंह रथी देवता का मंदिर स्थापित किया।
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धन सिंह रथी देवता की महिमा और चमत्कारों के कारण, टिहरी क्षेत्र में उनकी लोकप्रियता बढ़ती गई। उनके मंदिर में प्रतिदिन हजारों भक्त दर्शन के लिए आते हैं, और उनकी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। विशेषकर 7 गते बैशाख को आयोजित मेले में दूर-दूर से श्रद्धालु शामिल होते हैं, जो उत्तराखंडी संस्कृति को संजोए हुए है।
धन सिंह रथी देवता की कहानी हमें यह सिखाती है कि एक साधारण व्यक्ति अपने कर्मों और परोपकार से देवत्व को प्राप्त कर सकता है, और समाज में अमर हो सकता है।
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