अगर आप टिहरी घूमने जा रहे हैं और कुछ हटके देखना चाहते हैं, तो रैसाड़ देवता मंदिर जरूर जाएँ। ये मंदिर नई टिहरी से करीब 6 किलोमीटर दूर लामकोट गाँव में है, चंबा वाली रोड के पास।
यहाँ जाने का रास्ता भी बड़ा मजेदार है। पहाड़ की शांति, हरे-भरे पेड़, और जो ठंडी-ठंडी हवा मिलती है, वो सच में आपको अच्छा महसूस कराती है। मंदिर तक जाने के लिए थोड़ा सा ट्रेकिंग करना पड़ता है, लेकिन वो सफर ही सबसे ज्यादा यादगार बन जाता है।
मंदिर खुद में बड़ी खास जगह है। यहाँ के लोग इसे अपने कुल देवता की तरह मानते हैं, यानी अपनी परेशानियों में सबसे पहले यही भगवान याद करते हैं। मंदिर की बनावट गांव के पत्थरों से है, बिल्कुल देसी पहाड़ी स्टाइल में। यहाँ का माहौल बहुत ही सुकून देने वाला है। पूजा के टाइम यहाँ ढोल-नगाड़ा बजता है और आसपास की घाटियों का नजारा बहुत सुंदर लगता है।

मंदिर के आसपास क्या देख सकते हैं?
- बादशाहीथौल: यहाँ से पूरी घाटी और हिमालय की चोटियाँ देख सकते हैं।
- चंबा: टिहरी से थोड़ी दूरी पर ये छोटा सा हिल स्टेशन है, जहाँ कैफे, फलदार बाग और बहुत शांत माहौल मिलता है।
- थात गाँव: इस गांव में मेले लगते हैं और लोककथाएँ सुनने को मिलती हैं।
अगर आपको ट्रेकिंग, फोटो खींचना, या गाँव का कल्चर देखना पसंद है तो यहाँ खूब मजा आएगा।
रुकने के लिए कहाँ जाएँ?
- टिहरी शहर: यहाँ अच्छे होटल्स और होमस्टे मिल जाएंगे।
- चंबा/बादशाहीथौल: यहाँ छोटे-छोटे गेस्ट हाउस हैं, जो बजट में रहते हैं और व्हैली का व्यू भी मिलता है।
- लामकोट गाँव: अगर असली पहाड़ी लाइफ देखनी है तो किसी लोकल परिवार के यहाँ होमस्टे कर सकते हैं।
यात्रा का मजा:
“सुबह-सुबह पहाड़ों में चलना, चिड़ियों की आवाज़, ठंडी हवा और मंदिर पहुँचने पर मिलने वाली शांति – पूरा माहौल अलग ही फील दिलाता है। मंदिर में बैठकर घाटी का नजारा देखो, तो सच में मन खुश हो जाता है।”

अगर आप असली पहाड़ी सुकून और लोकल संस्कृति को महसूस करना चाहते हैं, तो रैसाड़ देवता मंदिर जरूर जाएँ। यहाँ का सफर भी दिल से याद रहेगा!
(टिप: अक्टूबर-जून के बीच जाएँ, ट्रैकिंग जूते और पानी जरूर साथ रखें, और जगह की लोकल जानकारी पूछ लें)
रैसाड़ देवता की कहानी
रैसाड़ देवता की कहानी बड़ी दिलचस्प है, खासतौर पर टिहरी और आसपास के गांवों में। यहाँ के लोग रैसाड़ देवता को भगवान शिव का ही रूप मानते हैं और इन्हें अपना सबसे बड़ा रक्षक देवता कहते हैं।
बहुत साल पहले गाँव में एक जगह पर अनजान सा शिवलिंग दिखा। कुछ बुजुर्गों को लगातार सपने आए कि ये शिवलिंग खुद भगवान शिव का “साक्षात रूप” है। गाँव वालों ने उस जगह पर पूजा शुरू कर दी — शिवलिंग पर दूध, जल, दही चढ़ाने लगे। धीरे-धीरे यहाँ जगह-जगह, गाँव-गाँव से लोग आकर दर्शन करने लगे और ज्यादातर ने महसूस किया कि उनकी दिक्कतें यहाँ प्रार्थना करने से दूर हो जाती हैं।
पहले यहाँ केवल एक छोटा सा टिन शेड का मंदिर था। जब लोगों की श्रद्धा बढ़ी तो गाँव वालों ने चंदा जमा किया और मंदिर को बड़ा बनवाया। पुराने, असली और टेढ़े-मेढ़े शिवलिंग को ढक कर एक नया सीधा शिवलिंग ऊपर स्थापित किया गया — ताकि पूजा करने वाला दूध, जल आदि ऊपर वाले शिवलिंग पर चढ़ाए और असल शिवलिंग तक सब कुछ पहुंच जाए।
एक लोककथा ये भी मिलती है: कभी पुराने जमाने में एक परिवार ने पत्थर रूपी शिवलिंग को तोड़ने की कोशिश की थी, तो उस परिवार को अजीब-अजीब घटनाएँ और दुखद हादसे झेलने पड़े। इसके बाद लोग डर गए, और तभी से सभी गाँवों के लोग वहाँ दूध चढ़ाते हैं। यहाँ साँप से जुड़ी कहानी भी बताई जाती है — जब लोगों ने शिवलिंग तोड़ना चाहा, तो उसमें से साँप निकला और गाँव के बुजुर्गों ने कहा, “ये शिव का रूप है, इसे मारो मत, दूध पिलाओ।” साँप को दूध पिलाने के बाद वो वहाँ से चला गया। अब मान्यता है कि हर चार महीने में गाँव वालों को वो जगह अलग रूप से दिखती है।

आज भी गाँव, खासतौर पर लामकोट, भुना बागी, इत्यादि के लोग, अपनी समस्या, सुख-दुख लेकर रैसाड़ देवता के मंदिर जाते हैं। उनकी मान्यता ये है कि शिव स्थानीय कुल देवता हैं और हमेशा गाँव की रक्षा करते हैं।
सारांश: SKMystic पर लिखी कहानी लोकल पुजारियों, बुजुर्गों और गाँव की सुनी-सुनाई बातों पर आधारित है — और यहाँ की लोकश्रद्धा में इसे सच माना जाता है। यह पूजन-स्थल, लोक-विश्वास और रहस्यमयी घटनाओं से भरी जगह है जो गाँववालों के लिए आज भी चमत्कारी, दिव्य और “सच्ची कहानी” जैसी ही है।
एक अन्य कथा के अनुसार रैसाड़ देवता यहाँ के बुजुर्गों और लोक गाथाओं के मुताबिक, रैसाड़ देवता भगवान शिव का ही एक रूप माने जाते हैं और ये टिहरी के लामकोट, सोंदकोटि, और आसपास के गाँवों के कुल देवता हैं। ये देवता हर मुश्किल वक्त में गाँव वालों की रक्षा करते आए हैं।
बहुत समय पहले टिहरी और आसपास के इलाकों पर गोरखाओं ने हमला किया था। उस समय गोरखाओं ने गाँव में हमला करके लूटपाट और हत्या करने की कोशिश की। गाँव वाले बहुत डर गए थे और उन्होंने अपने कुल देवता – रैसाड़ देवता से मदद मांगी।
कहते हैं, उस रात गाँव के कुछ लोगों को सपना आया कि रैसाड़ देवता ने खुद आकर गाँव वालों को चोरों और दुश्मनों से सावधान किया। कुछ लोग बताते हैं कि मंदिर के आसपास अचानक किसी ने हवा में युद्ध के शोर, घुंघरू, या ढोल-नगाड़े जैसी आवाज़ें सुनीं – जैसे कोई देवता पहरेदारी कर रहा हो। अगले ही दिन गाँव वालों ने मिलकर खुद की सुरक्षा की तैयारी की, और गोरखा सैनिकों को गाँव में आने से रोक दिया।
इसके बाद से, लोगों की मान्यता है कि जब-जब गाँव पर कोई मुसीबत या बीमारी आई, तब-तब रैसाड़ देवता ने किसी न किसी रूप में संकेत देकर गाँव वालों की रक्षा की। यही वजह है कि आज भी हर साल यहाँ मेला, विशेष पूजा और ग्राम रक्षा के लिए प्रार्थना होती है।
क्यों “रैसाड़” नाम पड़ा, इसका रहस्य आज भी पूरी तरह साफ़ नहीं है – बुजुर्ग बस कहते हैं कि ये नाम बहुत पुराने ज़माने से चला आ रहा है।
सीधा-साधा भाव:
रैसाड़ देवता की कहानी हिम्मत, विश्वास और गाँव के लोगों की एकता की मिसाल है – गाँववालों के लिए ये सिर्फ भगवान नहीं, संकट में साथ देने वाले अभिभावक जैसे हैं।
(ये कहानी गाँव के बुजुर्गों, लोक गाथाओं, और कई यात्रियों के अनुभव पर आधारित है)

